हिमालय  

Posted by Satyajeetprakash in , ,



खड़ा हिमालय बता रहा है

डरो न आंधी-पानी में

खड़े रहे तुम अविचल होकर

हर संकट तूफानी में


डिगो न अपने प्रण से तुम

सब कुछ पा सकते हो प्यारे

तुम भी ऊंचे उठ सकते हो

छू सकते हो नभ के तारे


खड़ा रहा जो अपने पथ पर

लाख मुसीबत आने पर

मिली सफलता जग में उसको

जीने में मर जाने में

This entry was posted on रविवार, 18 मई 2008 at 10:50 pm and is filed under , , . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

2 टिप्पणियाँ

bahut khoob kahii aapne, sach main himalay se bahut seekha aapki kavita se...thanks a lot

19 जुलाई 2008 को 9:27 pm बजे

ये मेरी कविता नहीं है. बस बचपन में पढ़ी थी, यहां संकलित कर रहा हूं.

11 अगस्त 2008 को 11:24 pm बजे

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