- नरेन्द्र कोहली
मनमोहन सिंह ने बड़े ध्यान से बाबा को देखा और बोले, ”बड़े भोले हो बाबा। मेरे पास यह कहने आए हो कि मैं स्वयं अपने लिए, अपनी मालकिन के लिए और मालकिन के दासों के लिए मृत्युदंड की घोषणा कर दूं। ऐसा भी कभी हुआ है क्या? तुम तो हमारा हाल भी करुणानिधि के समान कर देना चाहते हो।”
”यह सरकार बड़ी राक्षस है।” भोलाराम ने कहा, ”देखो तो अहिंसक अनशन करने वालों पर खर, दूषण और त्रिशिरा की सेना के राक्षस छोड़ दिए।”
रामलुभाया जोर से हंसा, ”सरकार तो राक्षस है ही, पर बाबा कितने भोले हैं, यह नहीं देखा तुमने।”
”इस सादगी पर कौन न मर जाए। ऐ खुदा, लड़ते हैं और हाथ में हथियार भी नहीं।”
”वे हथियार लेकर लड़ने नहीं गए थे।” भोलाराम कुछ तीखे स्वर में बोला, ”वे गांधी जी के समान अहिंसक अनशन करने गए थे।”
”तो सोनिया गांधी ने सिध्द कर दिया न कि गांधी जी के अनशन का तरीका एकदम गलत और अव्यावहारिक है।” रामलुभाया बोला, ”अहिंसक अनशन के नाम पर रात को डेढ़ बजे पुलिस आती है। लाठी और गोली का सहारा लेती है। दिन भर के अनशन के बाद भूखे सोए हुए बूढ़े और बच्चों को, स्त्रियों और पुरुषों को मार-मार कर खदेड़ देती है। जिनकी हड्डियां टूट जाती हैं और जो चल नहीं सकते, उन्हें घसीट कर कहीं फेंक आती है…”
”पर पुलिस रात को ही क्यों आती है?” भोलाराम ने कहा, ”दिन में भी तो आ सकती है।”
”दिन में लोग जाग रहे होते हैं।” रामलुभाया ने कहा, ”वे अपना बचाव कर सकते हैं। दिन में यह भी पता लग जाता है कि पुलिस ने किन-किन शस्त्रों का सहारा लिया। कितने लोग घायल हुए। कितने मारे गए। दिन में अस्पतालों में भी भीड़ होती है और श्मशान में भी।”
”पुलिस वालों को चाहिए कि अपनी सुविधा के लिए पुलिस लाइन में ही एक श्मशान बनवा लें। जितनों को चाहें मारें, जितनों को चाहें जलाएं। न किसी को पता चलेगा कि कितने पुलिस वाले मरे, न यह पता चलेगा कि कितने नागरिक मरे।”
”विचार तो अच्छा है, जाने अब तक के किसी गृह मंत्री को सूझा क्यों नहीं।”
”पर तुमने बाबा को भोला क्यों कहा?” भोलाराम ने पूछा।
”अरे सीधी सी तो बात है।” रामलुभाया हंसा, ”मनमोहन सिंह ने बाबा को पिछले दरवाजे से अपने घर बुलाया। बाबा ने मना कर दिया। बोले, सामने के फाटक से आएंगे। पीछे बने नौकरों के क्वार्टरों के बीच से क्यों आएं? मनमोहन सिंह ने समझाया, सामने के फाटक से आए तो पत्रकार भी साथ आ जाएंगे। कैमरे आ जाएंगे। चुपचाप पीछे से आ जाओ।”
बाबा मान गए। मनमोहन सिंह ने पूछा, ”अब बताओ, क्या कष्ट है तुम्हें। अच्छा खासा खाने-पीने को मिल रहा है। रोटी भी खा रहे हो और च्यवनप्राश भी। फिर क्यों अनशन करना चाहते हो?”
”मैं चाहता हूं कि देश और विदेश में छिपाया गया सारा काला धन राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए और भ्रष्टाचारी तथा काले धनिकों को मृत्यु दंड दिया जाए।”
मनमोहन सिंह ने बड़े ध्यान से बाबा को देखा और बोले, ”बड़े भोले हो बाबा। मेरे पास यह कहने आए हो कि मैं स्वयं अपने लिए, अपनी मालकिन के लिए और मालकिन के दासों के लिए मृत्युदंड की घोषणा कर दूं। ऐसा भी कभी हुआ है क्या? तुम तो हमारा हाल भी करुणानिधि के समान कर देना चाहते हो।”
बाबा उचक पड़े, ”अरे नहीं सिंह साहब। मैं ऐसी मांग कैसे कर सकता हूं। आप तो भले आदमी हैं। आपकी पार्टी के एक सचिव ने तो आपको संन्यासी ही कह दिया है। मैं तो काले धनिकों की बात कर रहा हूं, उन्हें फांसी दीजिए।”
”आप समझ नहीं रहे हैं, किंतु बात तो एक ही है न।” मनमोहन सिंह ने कहा, ”आप काले धनिकों को फांसी चढ़ाएंगे, तो आखिर चढ़ेंगे तो हम ही न।”
”आप क्यों सिंह साहब? आप तो देश के प्रधानमंत्री हैं। आप क्यों फांसी पर चढ़ेंगे?”
”अरे आप समझ क्यों नहीं रहे हैं योगी महाराज।” मनमोहन सिंह झुंझला गए, ”काले धनिक फांसी चढ़ेंगे, तो आप क्या समझते हैं कि काला धन आपके बाप का है…! विचित्र आदमी हैं आप। हमारे ही पास चले आए कि काले धनिकों को फांसी पर चढ़ा दो। आपको किस बाकत से लगता है कि हम आत्महत्या कर लेंगे?”
सम्पर्क : 175 वैशाली, पीतमपुरा, दिल्ली- 110034
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on रविवार, 14 अगस्त 2011
at 9:12 am
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