पुष्प की अभिलाषा  

Posted by Satyajeetprakash in ,

पुष्प की अभिलाषा


चाह नहीं मैं सुरबाला

के गहनों में गूंथा जाऊं.

चाह नहीं मैं प्रेमी माला में

बिंध्य प्यारी को ललचाऊं.


चाह नहीं सम्राटों के शव पर

हे हरि, मैं डाला जाऊं.

चाह नहीं देवों के सिर पर

चढूं भाग्य इठलाऊं


मुझे तोड़ लेना वनमाली

उस पथ पर देना तू फेंक.

मातृ भूमि को शीश चढ़ाने

जिस पथ जाएं वीर अनेक.

माखनलाल चतुर्वेदी

This entry was posted on सोमवार, 9 जून 2008 at 10:45 pm and is filed under , . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

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